नवदुर्गा का चौथा स्वरुप माँ कुष्मांडा आराधना मंत्र - कथा
नवदुर्गा का चौथा स्वरुप है माँ कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना करी जाती है, इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है,इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं, इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं, आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है, इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है,
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माँ कूष्माण्डा आराधना मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥
पौराणिक कथा अनुसार माँ कूष्माण्डा की कथा
ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण ही इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है,मां दुर्गा असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था. मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी. पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है. इसके पीछे मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है.
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ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण ही इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है, पुराणों के अनुसार जब सृष्टिका अस्तित्व नहीं था चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी, अर्थात माँ को सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
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कुष्मांडा देवी का वास सूर्यमंडल लोक में है, सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल माँ कुष्मांडा देवी इन्हीं में ही है, इसीलिए ही कुष्मांडा देवी के तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं और सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में माँ कुष्मांडा देवी का तेज व्याप्त है,
सभी भक्तो को पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन कुष्मांडा देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है।
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