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किसानो के 500 मुँह है-सबकी मांगे अलग-किसान नेता फसेंगे या निकलेंगा रास्ता

देश में सबसे बड़ी समस्या चल रही है, पंजाब उत्तररादेश एवं कुछ राज्यों के किसान हाल ही में केंद्र सरकार किसानो की आय बढ़ाने यानी की 2022 तक किसान की आय दोगुनी करने के लिए जो कानून लाये थे उसके खिलाफ आंदोलन कर रहे है, अब सवाल यह है की देश में 500 किसान संघठन है,कोई बीजेपी कोई कांग्रेस,लेफ्ट,समाजवादी पार्टी सबकी मांग भी अलग अलग है, 

kisan andolan
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सरकार कोई भी किसान योजना सरकार बांये तो 500 संघठन का ध्यान रखे या 35 का, 35 इसीलिए क्यूंकि अभी जो आंदोलन चल रहा है उसमे कुल 35  किसान संघठन है,ज्यादातर पंजाब से है कुछ उत्तरप्रदेश से,जो कांग्रेस,SP ,लेफ्ट,अकालीदल समर्थक किसान है, अब तो अपक्ष वाले भी किसान संघठन के नेता बन बैठे है,

अभी जो 32 मुँह खुले है उसीमे एकता नहीं, कोई कहता है MSP फाइनल करे ,कोई कहता है पराली जलाने पर जो दंडात्मक कार्यवाही हुई है वह बंद करे,कोई कहता है 3 कानून ख़तम करे, कोई कुछ अलग बोल रहा है, तो भला 500 लोग बैठते तो क्या होता ?

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कमसे कम किसानो को सरकार पर भरोसा करना होगा की यही एक सरकार है जिसने आपके लिए काफी कुछ किया है, कही ऐसा भी ना हो की आपकी लालच आपको ले ना डुबे ?

कल प्रधानमंत्री श्री ने कहा की यह जो किसान बिल लाये है वह किसानो के भलाई के लिए है, और लोग किसान को भ्रमित करते है, दूसरी और अब जो 35 किसान नेता किसानो में भ्रम फैला कर दिल्ही तक तो ले आये है,मगर अब अगर सरकार कानून ख़तम नहीं करती, तब यह नेता किसानो को क्या मुँह दिखाएँगे ? उनके लिए यह आंदोलन गले की हड्डी साबित हो सकती है,यानी किसान के बिच किसान नेता फसेंगे  ? किसान उसको पूछ सकता है की अगर कुछ गलत नहीं  था तो इतना हंगामा क्यों करा ?

कुल मिलाकर कहे तो किसान को राजनीतिक मुखौटा नहीं पहन ना चाहिए, सरकार ने जब आपको 2022 तक आय डबल करने का वादा करा तो किसान को भी उस का इन्तजार करना चाहिए, 

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