अभिनेता संजय दत्त की माता नरगिस दत्त एवं जवाहरलाल नहेरु के बिच कौनसा रिश्ता था ?
![]() |
जद्दनबाई एवं नरगिस दत्त (तस्वीर के लिए साभार :https://www.cinestaan.com |
क़िस्से इंटरनेट की अलग अलग साइट से लिये गये हैं !
जद्दनबाई की मां दिलीपा मंगल पाण्डेय के ननिहाल के राजेन्द्र पाण्डेय की बेटी थीं.उनकी शादी 1880 में बलिया में हुई थी लेकिन शादी के एक हफ़्ते के अंदर ही उनके पति गुज़र गए थे.जद्दनबाई के तीन बच्चे थे और तीनो के ही पिता अलग अलग थे।मजहब से मुसलमान जद्दनबाई के तीन विवाह हुए और एक ब्राह्मण मोहन बाबू से तीसरे विवाह से फातिमा रशीद उर्फ नर्गिस का जन्म हुआ.
नर्गिस की सांसद बेटी प्रियादत्त और नम्रता दत्त द्वारा लिखी गयी पुस्तक के अनुसार बालीवुड की प्रथम महिला संगीतकार फिल्म निर्माता तथा पटकथा लेखिका उत्तर प्रदेश के चिलबिला गांव की थी और वह अपने जमाने की मशहूर ठुमरी गायिका भी थी,उनकी गायकी से उत्तम चंद मोहनचंद उर्फ मोहनबाबू इतने प्रभावित हुए कि उनका दिल उनपर आ गया.उन्होंने इस्लाम ग्रहण कर अपना नाम अब्दुल राशिद रख लिया और जद्दन बाई से निकाह कर लिया.मोहनबाबू जद्दनबाई के प्रेम में इतने पागल हो गए कि उन्होंने इस्लाम ग्रहण कर लिया.देश के प्रथम शिक्षा मंत्री तथा राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने उन्हें इस्लाम ग्रहण करवाया था.
उन्नीसवीं सदी में जद्दनबाई का नाम हर संगीत का दीवाना बडे ही अदब से लेता था।यह वो दौर था जब जद्द्नबाई का नाम हिंदुस्तान के हर व्यक्ति के मुंह पर था।वो भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की पहली महिला संगीत निर्देशक थी।भारत की पहली महिला फिल्म निर्माता और संगीतकार जद्दनबाई ने एक ऐसे माहौल में जन्म लिया जिन्हें 'कोठेवालियां' कहा जाता है।
लेकिन ऐसी परिस्थितयों में पैदा होने के बावजूद जिस प्रकार जद्दनबाई ने अपनी सीमित परिधि से निकल कर बम्बई नगरी की फ़िल्मी दुनिया में अपनी एक पहचान और जगह बनाई यह अपने में एक मिसाल है। जद्दनबाई को उनकी सुरीली आवाज की वजह से खास तौर पर पसंद किया जाता था और सिर्फ उनकी गायकी पर फिदा होकर उस दौर के कई राजा और नवाब उनपर सोने-चांदी की बरसात कर दिया करते थे.जद्दन का गया हुआ गाना ”लागत करेजवा में चोट” आज भी लोग दिल थाम के सुनते हैं।
जद्दन बाई अपने जवानी के दिनों में बेहद सुन्दर थीं।बनारस में चौक थाने के पास जद्दन कि महफ़िल सजती थी।जद्दन बाई ने संगीत की शिक्षा दरगाही मिश्र और उनके सारंगी वादक बेटे गोवर्धन मिश्र से ग्रहण की थी।जब अभिनय में जद्दनबाई को खासी सफलता नहीं मिली तो उन्होंने वक्त की नब्ज पकड़ते हुए एक प्रोडक्शन कंपनी खोली और उसके तहत फिल्मों का निर्माण करने लगीं.जद्दनबाई किस्मत आजमाने के लिए मुंबई आईं जहां उनकी ठुमरी गायकी को भरपूर प्रशंसा मिली।उन्होंने फिल्म निर्माण प्रारंभ किया, जिसमें पहले पति से जन्मे पुत्र अनवर खान को नायक बनाया। फिल्म का घाटा पाटने के लिए उन्होंने नरगिस को अभिनय क्षेत्र में उतारा।
कई दूसरी फिल्में बनाने के अलावा उन्होंने 1935 में ‘तलाशे हक’ बनाई जिसमें बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट न सिर्फ छह वर्षीय नरगिस ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की बल्कि खुद जद्दनबाई ने भी संगीत निर्देशन का जिम्मा संभालकर हिंदी फिल्मों की सर्वप्रथम महिला संगीतकार होने का रुतबा हासिल किया.जब युवा राज कपूर अपनी पहली फिल्म ‘आग’ के लिए नरगिस को अनुबंधित करने गए तो जद्दनबाई ने उनके पृथ्वीराज का पुत्र होने के नाते अनुबंध किया।'बरसात’ निर्माण के दौरान ही जद्दनबाई की मृत्यु कैंसर के कारण हो गई।
दिलीपा भी धीरे धीरे तवायफ़ों वाले तमाम तौर-तरीक़े सीख गयीं और एक रोज़ चिलबिला की मशहूर तवायफ़ रोशनजान के कोठे पर बैठ गयीं !रोशनजान के कोठे पर उस ज़माने के नामी वक़ील मोतीलाल नेहरू का आना जाना रहता था जिनकी पत्नी पहले बच्चे के जन्म के समय गुज़र गयी थी. दिलीपा के सम्बन्ध मोतीलाल नेहरू से बन गए...इस बात का पता चलते ही मोतीलाल के घरवालों ने उनकी दूसरी शादी लाहौर की स्वरूप रानी से करा दी जिनकी उम्र उस वक़्त 15 साल थी...इसके बावजूद मोतीलाल ने दिलीपा के साथ सम्बन्ध बनाए रखे... दिलीपा का एक बेटा हुआ जिसका नाम मंज़ूर अली रखा गया...
उधर कुछ ही दिनों बाद 14 नवम्बर 1889 को स्वरूपरानी ने जवाहरलाल नेहरू को जन्म दिया ! साल 1900 में स्वरूप रानी ने विजयलक्ष्मी पंडित को जन्म दिया और 1901 में दिलीपा के जद्दनबाई पैदा हुईं...अभिनेत्री नरगिस इन्हीं जद्दनबाई की बेटी थीं.मंज़ूर अली आगे चलकर मंज़ूर अली सोख़्त के नाम से बहुत बड़े मज़दूर नेता बने और साल 1924 में उन्होंने यह कहकर देशभर में सनसनी फैला दी कि मैं मोतीलाल नेहरू का बेटा और जवाहरलाल नेहरू का बड़ा भाई हूं !
वीडियो >>. देखे और सुने
एक रोज़ लखनऊ नवाब के बुलावे पर जद्दनबाई मुजरा करने लखनऊ गयीं तो दिलीपा भी उनके साथ थी जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के किसी काम से उन दिनों लखनऊ में थे उन्हें पता चला तो वो उन दोनों से मिलने चले आए दिलीपा जवाहरलाल नेहरू से लिपट गयीं और रो-रोकर मोतीलाल नेहरू का हालचाल पूछने लगीं मुजरा ख़त्म हुआ तो जद्दनबाई ने जवाहरलाल नेहरू को राखी बांधी ! साल 1931 में मोतीलाल नेहरू ग़ुज़रे तो दिलीपा ने अपनी चूड़ियां तोड़ डालीं और उसके बाद से वो विधवा की तरह रहने लगीं,
अगर यह बात यही है तो नरगिस और जवाहरलाल नहेरु के बिच मामा भांजी का सम्बन्ध हो सकता है,
(गुजराती के वरिष्ठ लेखक रजनीकुमार पंड्या जी की क़िताब ‘आप की परछाईयां’ से साभार।)
कोई टिप्पणी नहीं
आपको किसी बात की आशंका है तो कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखे