लखीमपुर खीरी की घटना CM योगी की छवि को बदनाम करने की बड़ी साजिश: किसान आंदोलन से उपजी हिंसा से अनेक सवाल खड़े हुए
लखीमपुर से हिंसा की जो तस्वीरें और वीडियो आए हैं उससे स्पष्ट होता है कि हिंसा योजनाबद्ध तरीके से की गई है। अचानक होने वाली हिंसा में ज्यादातर व्यक्ति के मुँह पर कपड़ा या मास्क नहीं है पर पीटने वाले ने मुँह पर कपड़ा लपेट रखा है। इसके पीछे क्या कारण हो सकता सिवाय इसके कि पीटने वाले की शिनाख्त न हो सके।
लखीमपुर खीरी की घटना CM योगी की छवि को बदनाम करने की गहरी साजिशसेक्युलर-लिबरल पत्रकार भी सक्रिय हैं। कई पत्रकारों ने फेक न्यूज़ ट्वीट किया और उसके वायरल होने के कुछ घंटे के बाद उन ट्वीट को डिलीट करके खुद के गले में सत्यवादी का तमगा भी टाँग लिया। राजनीतिक पर्यटन पर निकली प्रियंका गाँधी तो पुलिस को धमकाती नजर आने लगी, कई नेता लखीमपुर खीरी पहुँचने के लिए अपना-अपना सामान बाँध चुके हैं। कांग्रेस अपनी अंदुरुनी समस्याओ से लोगो का ध्यान भटकाने अपने राज्य में समस्याओं से जूझने वाले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बघेल और पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी भी सब कुछ छोड़कर लखीमपुर पहुँचना चाहते हैं।
अखिलेश,मायावती,ममता ,ओवैसी ,केजरीवाल एंड कम्पनी यानी पूरा विपक्ष मानो ऐसी घटना का इंतज़ार कर रहे थे क्यूंकि उत्तरप्रदेश में चुनाव आने है,सबमे फोटो खिंचवाने की होड़ लगी है,
लखीमपुर से हिंसा की जो तस्वीरें और वीडियो आए हैं उनसे इस सोच को बल मिलता है कि हिंसा योजनाबद्ध तरीके से की गई है। अचानक होने वाली हिंसा में पिटने वाले व्यक्ति के मुँह पर कपड़ा या मास्क लपेट रखा है। इसके पीछे क्या कारण हो सकता सिवाय इसके कि पीटने वाले की शिनाख्त न हो सके। योजनाबद्ध तरीके से की गई हिंसा का एक उद्देश्य यह है कि भाजपा समर्थकों और कार्यकर्ताओं के मन में वही भ्रम पैदा करना है, जो भ्रम पश्चिम बंगाल के भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों के मन में पैदा हुआ है कि पार्टी उनकी सुरक्षा के बारे में कुछ नहीं सोचती।
वीडियो : निर्दोष लोगो की हत्या करते नकली किसान
भाजपा शासित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों में योगी आदित्यनाथ की छवि एक कुशल प्रशासक और बिना किसी लाग लपेट के कानून का राज स्थापित करने वाले नेता की है। उनकी कार्यशैली उन्हें एक ऐसे ब्रांड के रूप में प्रस्तुत करती है, ऐसे में यदि इस छवि को धक्का पहुँचाया जाए तो उस कार्यकर्त्ता और समर्थक के मन में उनकी कुशलता को लेकर भ्रम पैदा किया जा सकता है, जिसके मन में उनकी क्षमता को लेकर कोई संशय नहीं है। जो उन्हें नेतृत्व के लिहाज से श्रेष्ठ मानता है।
अब देखना यह होगा कि लखीमपुर में जो कुछ हुआ उससे योगी सरकार कैसे निपटती है। चूँकि हिंसा किसानों के नाम पर की गई है तो कोई भी सरकार या उसका नेतृत्व ऐसी किसी कार्रवाई से बचेंगे जो किसानों को नाराज कर सकती है, लेकिन यहीं योगी आदित्यनाथ की परीक्षा है। हर नेता किसी भी परिस्थिति में अपनी राजनीतिक पूँजी का ह्रास नहीं चाहता पर यदि उसकी कीमत दल के वही कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने इस राजनीतिक पूँजी को जमा करने में अपना पसीना बहाया है तब किसी भी कुशल नेतृत्व के लिए यह विचारणीय प्रश्न होगा कि यह कीमत कितनी बड़ी या छोटी है और क्या इसी कीमत पर राजनीतिक पूँजी की रक्षा संभव है?
यह प्रश्न केवल उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदेश नेतृत्व के लिए ही नहीं बल्कि बल्कि दल के केंद्रीय नेतृत्व के लिए भी है। कार्यकर्ता नहीं तो दल के समर्थक ऐसा मानते रहे हैं कि केंद्रीय नेतृत्व अभी तक ‘किसानों’ द्वारा की गई तमाम हरकतों के प्रति उदासीन रहा है। ऐसे में समर्थकों और कार्यकर्ताओं के मन में फिर से आत्मविश्वास पैदा करने के लिए दल के केंद्रीय और प्रदेशीय नेतृत्व को निर्णायक कदम उठाने होंगे।
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