Breaking News

Calcutta: Roshni Ali की याचिका पर ने दिवाली से पहले पटाखों पर लगाया प्रतिबंध


गौमांस बड़े चाव से खाने वाली और पर्यावरण के लिए चिंतित रोशनी अली जिन्हे यह पता भी नहीं है कि खाद्य उत्पाद से सभी ग्रीनहाउस गैसों का लगभग 60% केवल माँसाहार से होता है। और उनकी अपील पर कोलकत्ता हाईकोर्ट ने पटाखे फोड़ने पर प्रतिबन्ध लाद दिया, 

                                                     तस्वीर साभार ऑपइंडिया हिन्दी 

29 अक्टूबर 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, पटाखों पर प्रतिबंध राज्य में आने वाले अन्य सभी उत्सवों पर भी लागू होगा, जिनमें गुरु नानक जयंती, क्रिसमस और नए साल के जश्न शामिल हैं। एक ट्रैवलर एवं सह फिल्म निर्मात्री रोशनी अली द्वारा अदालत में एक जनहित याचिका दायर किए जाने के बाद यह आदेश जारी किया गया।

28 अक्टूबर 2021 को एक फेसबुक पोस्ट में, रोशनी अली ने पुष्टि की थी कि उन्होंने दिवाली से पहले पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी।उनका मानना है शहर की वायु गुणवत्ता बहुत अस्वास्थकर है, पटाखों और सर्दियों की शुरुआत के साथ यह और भी खराब होना तय है। कृपया हमारे फेफड़ों को बचाने में मेरी मदद करें। कल हाई कोर्ट में हमारी सुनवाई है। मुझे शुभकामनाएँ दें और इसे शेयर करें।”


हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब रोशनी अली ने दिवाली के दौरान पर्यावरण सक्रियता की ओर रुख किया हो। 15 नवंबर, 2018 को एक फेसबुक पोस्ट में, रोशनी अली ने पटाखे जलाकर दिवाली मनाने वालों को ‘सर्टिफाइड इडियट्स’ बताया था। उसने दावा किया था, “इस सारे प्लास्टिक को धापा ले जाया जाएगा और जला दिया जाएगा। फिर, हम जहरीली हवा में साँस लेंगे। प्लीज उठो, जागो।”

तेजी से बदलती जलवायु के बारे में अपनी चिंताओं के बावजूद, रोशनी अली अपने फॉलोवर्स को बीफ स्टीक के लिए अपने प्यार के बारे में बताने से नहीं कतराती हैं। एक ट्वीट में लिखा था


“सीसीएफसी में बीफ स्टीक इतना अच्छा कभी नहीं लगा।” दिलचस्प बात यह है कि खाद्य उत्पादन से सभी ग्रीनहाउस गैसों का लगभग 60% केवल माँसाहार से होता है।

सिर्फ दिवाली ही नहीं, अली ने अन्य हिंदू त्योहारों से पहले भी पर्यावरण संरक्षण की आड़ का सहारा लिया था। पिछले साल अगस्त में गणेश चतुर्थी के दौरान, उसने सुझाव दिया कि भगवान गणेश का उत्सव व्यर्थ है। इसके पीछे तर्क देते हुए उसका कहना था कि हर दिन हाथियों के साथ ‘दुर्व्यवहार’ किया जाता है।


पिछले साल जन्माष्टमी के दौरान, उसने प्रोपेगेंडा फैलाया कि ‘क्रूरता- मुक्त दूध’ का आइडिया एक धोखा है और उसने हिंदुओं से शाकाहारी होने और प्लांट बेस्ड दूध पीने का आग्रह किया। उसने वर्तमान युग में और भगवान कृष्ण के शासनकाल के दौरान गाय के प्रति दृष्टिकोण में अंतर का हवाला देते हुए एक पोस्ट साझा किया था।

अगस्त 2020 में भव्य राम मंदिर के ‘भूमि पूजन’के दिन,रोशनी अली ने अपने हिंदू फॉलोवर्स के बीच ‘अपराधबोध’ की भावना पैदा करने के लिए फेसबुक का सहारा लिया।यहाँ तक की पिछले साल 5 अगस्त को, उसने एक ब्लॉग भी लिखा था, जिसका शीर्षक था, ‘#RamMandirAyodhya, सीता का अत्यंत अपमान।’ हालाँकि फिलहाल उसने अपने वेबसाइट से इस ब्लॉग को डिलीट कर दिया है।

अली ने विविधता के प्रति अपनी सहिष्णुता और बहुलवाद की अवधारणा को प्रदर्शित करने के लिए अपने स्वयं के उदाहरण का हवाला दिया। उसने दावा किया था, “मैं कौन हूँ? मेरे पिता एक मुस्लिम थे, मेरी माँ एक हिंदू थीं। मेरी पूरी शिक्षा ईसाई धर्म से काफी प्रभावित रही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में मेरी मौसी हैं और मेरी दादी ब्रिटेन से थीं। मैंने सिल्वर बुद्धा पेंडेंट पहना हुआ है, जबकि मेरा पासपोर्ट कहता है कि मैं मुस्लिम हूँ। मैं हर हफ्ते काली मंदिर जाती हूँ, लेकिन मैं अपने ‘अली’ सरनेम से काफी प्यार करती हूँ, क्योंकि अपने पिता का मेरे पास बस यही बचा है।”

रोशनी अली के राजनीतिक विचार

रोशनी अली के फेसबुक और ट्विटर प्रोफाइल पर एक नज़र डालने से स्पष्ट रूप से उसका भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ रुख दिखता है। 

कश्मीर मुद्दे पर बोलते हुए कहा था  “…कई कश्मीरियों ने इतना अन्याय और क्रूरता देखी है कि वे आजादी चाहते हैं। अगर हम अत्याचार के साथ शासन करते हैं तो हम खुद को लोकतंत्र नहीं कह सकते हैं।”

रोशनी अली ने एक ‘प्रोपेगेंडा’ तस्वीर भी शेयर की थी, जिसे मूल रूप से ‘पत्रकार’ परंजॉय गुहा ठाकुरता ने पोस्ट किया था। इसके जरिए उसने यह बताने की कोशिश की कि सभी राजनीतिक नेताओं में से केवल ममता बनर्जी, जमीनी सर्वेक्षण में विश्वास करती हैं, जबकि अन्य हवाई सर्वेक्षण पर भरोसा करते हैं।

उल्लेखनीय है कि दिवाली ‘रोशनी’ का त्योहार है, जो रावण को हराकर भगवान राम की लंका से अयोध्या वापसी की याद में मनाया जाता है। रोशनी अली ने पहले राम मंदिर के निर्माण का विरोध किया था, हिंदुओं में अपराध की भावना पैदा करने की कोशिश की थी और गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी के दौरान पर्यावरण संरक्षण का आड़ ली थी। ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दिवाली से पहले अली की सक्रियता एक बार फिर तेज हो गई है।

मगर देखने वाली बात यह है की देश की हाईकोर्ट या किसी कानून को कभी बकरी ईद पर जिसतरह से खून की नदिया बहती है उसमे कभी कोई प्रदूषण नहीं दीखता,ना ही रोशनी अली जैसे लोग जो गौमांस या अन्य जानवर के मांस खाने वालो को कभी उन गूंगे पशु की चीखे सुनाई पड़ती है जिसका वह मांस खाते है,

कोई टिप्पणी नहीं

आपको किसी बात की आशंका है तो कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखे